आपके इस स्नेह्पूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय आपार हर्ष से भर गया
है.मैं आपको दुनिया के सबसे पौराणिक भिक्षुओं कि तरफ से धन्यवाद् देता
हूँ.; मैं आपको सभी धर्मों की जननी कि तरफ से धन्यवाद् देता हूँ , और मैं
आपको सभी जाति-संप्रदाय के लाखों-करोड़ों हिन्दुओं कि तरफ से धन्यवाद् देता
हूँ.मेरा धन्यवाद् उन वक्ताओं को भी जिन्होंने ने इस मंच से यह कहा है कि
दुनिया में शहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है . मुझे
गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ जिसने दुनिया को शहनशीलता और
सार्वभौमिक स्वीकृति (universal acceptance) का पाठ पढाया है.हम सिर्फ
सार्वभौमिक शहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते बल्कि हम विश्व के सभी
धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे
देश से हूँ जिसने इस धरती के सभी देशों के सताए गए लोगों को शरण दी
है.मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन
इस्राइलियों के शुद्धतम स्मृतियाँ बचा कर रख्हीं हैं, जिनके मंदिरों को
रोमनों ने तोड़-तोड़ कर खँडहर बना दिया, और तब उन्होंने दक्षिण भारत में
शरण ली. मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ जिसने महान
पारसी देश के अवशेषों को शरण दी और अभी भी उन्हें बढ़ावा दे रहा है. भाइयों
मैं आपको एक श्लोक कि कुछ पंक्तियाँ सुनाना चाहूँगा जिसे मैंने बचपन से
स्मरण किया और दोहराया है, और जो रोज करोडो लोगो द्वारा हर दिन दोहराया
जाता है.” जिस तरह से विभिन्न धाराओं कि
उत्पत्ति विभिन्न स्रोतों से होती है उसी प्रकार मनुष्य अपनी इच्छा के
अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है, वो देखने में भले सीधा या टेढ़े-मेढ़े लगे
पर सभी भगवान तक ही जाते हैं. “
वर्तमान सम्मलेन , जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, स्वयं में गीता में बताये गए एक सिद्धांत का प्रमाण है , “जो भी मुझ तक आता है ; चाहे किसी भी रूप में , मैं उस तक पहुँचता हूँ , सभी मनुष्य विभिन्न मार्गों पे संघर्ष कर रहे हैं जिसका अंत मुझ में है .” सांप्रदायिकता, कट्टरता, और इसके भयानक वंशज, हठधर्मिता लम्बे समय से प्रथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं. इन्होने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है , कितनी बार ही ये धरती खून से लाल हुई है , कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और कितने देश नष्ट हुए हैं.
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