ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो,
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी।
मग़र मुझको लौटा दो बचपन का सावन,
वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी।
मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी,
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी,
वो नानी की बातों में परियों का डेरा,
वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा,
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई,
वो छोटी-सी रातें वो लम्बी कहानी।
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितली पकड़ना,
वो गुड़िया की शादी पे लड़ना-झगड़ना,
वो झूलों से गिरना, वो गिर के सँभलना,
वो पीपल के पल्लों के प्यारे-से तोहफ़े,
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी।
कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना
घरौंदे बनाना,बना के मिटाना,
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी,
वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी,
न दुनिया का ग़म था, न रिश्तों का बंधन,
बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िन्दगानी।

POTA BHAI 

देशभक्त कलाम को प्रणाम....

देशभक्त कलाम को प्रणाम....

                   
   हे कलाम... फिर किसी अशिअम्मा जैनुलाब्दीन जैसी माँ की कोख से किसी जैनुलाब्दीन मराकायर पिता के घर में... भारत माँ का गौरव बढाने भारत भूमि पर जल्दी आना.... और ईश्वर से प्रार्थना है उन्हें स्वर्ग में स्थान न दे भारत की भूमि को स्वर्ग बनाने उन्हें फिर से इस भूमि पर भेजे " देशभक्त कलाम को प्रणाम .....

भारतीय संस्कृति के हित में इस कविता को भी याद रखना चाहिए-

अँग्रेजी सन को अपनाया,
विक्रम संवत भुला दिया है...
अपनी संस्कृति, अपना गौरव
हमने सब कुछ लुटा दिया है...
जनवरी-फरवरी अक्षर-अक्षर
बच्चों को हम रटवाते हैं...
मास कौन से हैं संवत के,
किस क्रम से आते-जाते हैं...
व्रत, त्यौहार सभी अपने हम
संवत के अनुसार मनाते हैं...
पर जब संवतसर आता है,
घर-आँगन क्यों नहीं सजाते...
माना तन की पराधीनता
की बेड़ी तो टूट गई है...
भारत के मन की आज़ादी
लेकिन पीछे छूट गई है...
सत्य सनातन पुरखों वाला
वैज्ञानिक संवत अपना है...
क्यों ढोते हम अँग्रेजी को
जो दुष्फलदाई सपना है...
अपने आँगन की तुलसी को,
अपने हाथों जला दिया है...
अपनी संस्कृति, अपना गौरव,
हमने सब कुछ लुटा दिया है...
सर्वश्रेष्ठ है संवत अपना
हमको इसका ज्ञान नहीं हैं...



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अति-महत्वपूर्ण संदेश भारतीय युवाओं के लिए

अति-महत्वपूर्ण संदेश भारतीय युवाओं के लिए:-
उस परम-पिता ने सृष्टि की रचना से ही पुरुष को नारी से सर्वोत्तम बनाया है...
वो चाहे शारीरिक संरचना हो या मानसिक संरचना...
शायद कुछ महिलाओं को ये सत्य ना पचे मगर यही सार्वभौमिक सत्य है...
मादा की अपेक्षा नर हमेशा सुन्दर होता है...
जाने कितने ही उदाहरण हैं ऐसे-
आप मोर को देखिये और फिर मोरनी को देखिये...
आप बैल को देखिये और फिर गाय को देखिये...
आप शेर को देखिये और फिर शेरनी को देखिये...
सब भगवान् की लीला है...
और सृष्टि रचयिता ने हमेशा ही नर को सुन्दरता का प्रतिरूप बनाया है...

फिर ना जाने औरत के सामने आदमी स्वयं को 'हीन' क्यों समझता है.??
वर्तमान परिद्रश्य में देखें तो बहुत ही बुरा हाल है...
आजकल के युवा जो माँ-बाप के सामने जबान चलाते हैं...
हर छोटी-छोटी बात पर 'गुस्सा' और आँखें दिखाते हैं...
मगर जब उनके सामने कोई लडकी आ जाये
तो दुनिया के सबसे सभ्य बन जाते हैं...
'सबसे अच्छा' बनने के लिए वो सब जाल बुनते हैं जो 'लडकी' को पसंद हो...
अपनी सगी बहन को दो रूपये की टॉफी भी नहीं देते होंगे मगर 'गर्ल फ्रेंड' को अपनी पॉकेट मनी में से पचास रूपये की चोकलेट उपहारस्वरूप दे देते हैं...
ये कटु सत्य है...
क्यों... क्यों होता है ऐसा..??
क्यों भारतीय युवा 'दिशाहीन' हो रहा है..??
उनके जीवन का उद्देश्य क्यों भटक रहा है..??
 

क्युकी वर्तमान युवा चरित्रहीनता की तरफ बढ़ रहा है...
वो फिल्मो का अंध-अनुयायी है...
देश की फिल्मे और मीडिया उस देश के लोगो का चरित्र बनाते हैं...
आप ही देखें-
'दम भर जो उधर मुंह फेरे, ओ चंदा' (आवारा-1951) से 'ऊह-ला-ला ला' (डर्टी पिक्चर-2012) तक सारा चरित्र चल-चित्रण सामने है...


मैं तो बस इतना ही कहूँगा-
अपने माँ बाप और देश से ज्यादा प्यार, मोहब्बत और 'लड़की बाजी' को अहमियत देने वाले सभी लोगो के अस्तित्व पर लानत है...
धिक्कार है उनके घटिया विचारों, गन्दी सोच और तुच्छ मानसिकता भरे जीवन को, जो इस देश और धरती के लिए 'बोझ' के सिवाय कुछ भी नही...
भगवान सद्बुद्धि दे भारतीय युवाओं को...
ताकि वो राष्ट्रवादी और देशप्रेमी बन सकें...


"...बारह बरस लौं कूकर जीवै, अरु तेरह लौं जियै सियार।
बरस अठारह क्षत्रिय जीवै, आगे जीवन कौ धिक्कार।।..."

जब धिक्कार वाला जीवन शुरू हो जाये...
यानि कि उम्र अठारह वर्ष से ज्यादा हो जाए...
तो इस धिक्कारता से बचने का केवल एक ही उपाय है...
राष्ट्रवादी बनो... देश के लिए जीओ और देश के लिए मरो...
सबको राष्ट्रवादी बनने के लिए प्रेरित करो और राष्ट्रवाद का प्रचार करो...
कोई भी देश तभी विकसित होता है...
जब उसके देशवासी अपने देश को 'स्वयं' से ज्यादा प्रेम करते हैं...
यानि कि 'राष्ट्रवादी' होते हैं...
मैं सबको 'राष्ट्र के लिए समर्पित' बनाने का एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ...
और अहसास दिलाना चाहता हूँ सबको कि सारी दुनिया में सबसे बड़ी माँ है-
माँ भारती और उससे प्रेम ही निस्वार्थ और सार्थक प्रेम है...
मेरा कार्य सिर्फ 'जोड़ना' है सबको...
एक बड़ा 'काफिला' चाहिए जो वतन की राहों को 'रौशन' कर दे...
मुझे उम्मीद है कि आप 'सच्चे राष्ट्रवादी' बनेंगे...
और हम सबका केवल एक ध्येय होगा-
"राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि."

"तुम मुझे क्या खरीदोगे... मैं तो मुफ्त हूँ.!!"

"तुम मुझे क्या खरीदोगे... मैं तो मुफ्त हूँ.!!"
'मुफ्त' होना ही दुःख है आम आदमी का... उसके सिवाय इस देश में कुछ भी मुफ्त नही है और गरीब की औकात इस महंगाई का सामना करने की अब रही नही.?

देश की जनता का बुरा हाल और मरना मुहाल कर दिया है, इस लोकद्रोही कांग्रेस सरकार ने...
हर चीज के दाम आसमान छू रहे हैं... किसी पर कोई नियंत्रण नही है.??
आम आदमी का दिन-रात बढती खाद्य महंगाई से जीना मुश्किल हो गया है...सरकार जनहित ताक पर रखकर हाथ पर हाथ धरे बैठी है...

जबकि भ्रष्टाचार के लिए सभी मंत्रियों के हाथ खुले छोड़ रखे हैं...
आर्थिक विषमता की खाई असीमित होती जा रही है...
गरीब भूखे मर रहे हैं और अमीर करोडपति से अरबपति हो रहे हैं...

जनता के पास कोई विकल्प भी नही है 2014 से पहले...
"एक दिन की मूर्खता से पांच साल तक सजा मिलती है."
 --यही तथाकथित लोकतंत्र का कडवा और काला सत्य है...

आज के गरीब की हिम्मत नही है और ना ही उसका वश चलता है कि वो जुल्म का विरोध करे...  और जिनको डटकर विरोध करना चाहिए, वो मौन हैं और घरों में दुबके बैठे हैं... 
इन सबके लिए 'दुष्यंत कुमार जी' ने कहा है-

"कहीं तो धूप की चादर बिछाकर बैठ गए...
कहीं तो छाँव सिरहाने लगाकर बैठ गए...
जब लहुलुहान नजारों का जिक्र आया तो,
शरीफ लोग उठे और दूर जाकर बैठ गए..."

देश के इन्हीं तथाकथित 'शरीफ' लोगों ने अनैतिक, अन्याय और अत्याचार के खिलाफ प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया है...
जिस दिन देश व समाज के सभ्य व बुद्धिजीवी लोग सरकार के भ्रष्टाचार, अत्याचार व दुराचार के खिलाफ आवाज उठा देंगे...
इस देश को लूटने वाले डकैतों को अपना बोरिया-बिस्तर बाँधना ही पडेगा...
आवश्यकता है देश की जनता के संगठित होने की...

'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'
वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...




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सरकार है या मौत की फैक्ट्री..?

असली पप्पू तो ये चाय वाला निकला 9 महीने बाद पता चला पप्पू फेल हो गया हैं. गरीबी मिटा देने की बातें सिर्फ बातें हैं, जो दौलत के भूखे है...